(प्रवचन पूज्य गुरुदेव) अपने मिशन का भी क्रम इसी प्रकार बढ़ता जा रहा है। प्रारंभ में इसका नाम ‘गायत्री परिवार’ रखा गया था। वह प्रारंभ था। उस समय लोगों को यह बतलाया गया था कि गायत्री मंत्र भारतीय धर्म का मूल है। उसे लोगों को अपनाना चाहिए, जपना चाहिए, ताकि लोगों का भविष्य उज्ज्वल हो सके। इस प्रकार की बातें हमने तथा हमारे मिशन ने प्रारंभ में बतलाई थीं। इस बीज को लोगों को बतलाया गया था और यह कहा गया था कि जो व्यक्ति एक माला का नित्य जप करेंगे, उन्हें हम गायत्री परिवार का सदस्य मानेंगे। बचपन में यही था।
समय ने आगे के लिए कदम बढ़ाया। अपने परिवार एवं संगठन को एक और आयाम दिया गया। अब उसके साथ युग निर्माण योजना को भी जोड़ दिया गया है। उसका अर्थ यह था जो कि हमने लोगों को बतलाया कि हर व्यक्ति को एक माला गायत्री जप के साथ में नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक क्रांति हेतु भी बढ़चढ़कर कुछ काम करने के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने उस समय व्यक्ति- निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज- निर्माण के कार्यक्रम भी चलाए।
यह युग निर्माण योजना के साथ जुड़कर मिशन के हुए विकास का क्रम था। हमने प्राइमरी कक्षा पूरी कर ली। हाईस्कूल की कक्षा भी हमारे मिशन ने पूरी कर ली है। अब हमने कॉलेज के स्तर की पढ़ाई प्रारंभ कर दी है, अर्थात् अब हमारी प्रौढ़ावस्था आ गई है। अतः अब हमें कॉलेज स्तर का होना चाहिए। उसी स्तर के क्रियाकलाप एवं योजना होनी चाहिए। वही अब बन रही है, बनाई जा रही है, परंतु इस बारे में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जिस युग परिवर्तन की बात कर रहे हैं, जिस समाज को बदलने की प्रतिज्ञा लेकर चले हैं, हम जिस नए समाज के निर्माण की बात करते हैं, उस संदर्भ में हमें विचार करना होगा कि युग निर्माण क्या है?
समाज का अभिनव निर्माण
मित्रो! युग निर्माण का अर्थ होता है- नए समाज का निर्माण करना। समाज क्या है? समाज व्यक्तियों का समूह मात्र है। लोगों का समुदाय इकट्ठा होकर ही समाज बनता है। उसके प्रत्येक घटक को समुन्नत बनाना, समृद्धिशाली बनाना हमारा काम है। यही है समाज निर्माण का उद्देश्य। फूल इकट्ठे होकर ही माला बनते हैं। सींके इकट्ठा होकर बुहारी बनती है। धागे इकट्ठा होकर रस्सा बनते हैं। इसी तरह समाज व्यक्तियों से बनता है। समाज के लोगों को देखकर ही युग की स्थिति देखी जा सकती है। अतः समाज निर्माण के कार्य को आरंभ करने से पहले हमें आत्मनिर्माण का कार्य करना पड़ेगा। यह आज नहीं, वरन् आज से तीस साल पहले हमने बतला दिया था कि हमारे क्रियाकलाप क्या हैं तथा हमारी भावी
योजना क्या है?
समाज निर्माण कैसे होगा? इस संदर्भ में उन दिनों, एक युगनिर्माण सत्संकल्प के रूप में घोषणापत्र बनाया गया था, जिसमें यह बात स्पष्ट रूप से बतला दी गई थी कि व्यक्ति निर्माण के संबंध में चार चीजें परम आवश्यक हैं। साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा, यह चार बातें आत्म निर्माण के लिए परमावश्यक हैं। यह चार बातें ऐसी हैं, जो एक- दूसरे के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। इन चारों को पूरा कर लेने पर आत्मनिर्माण का उद्देश्य पूरा होता है। इसमें एक भी ऐसा नहीं है, जिसे छोड़कर केवल अन्यों में पूरा कर लेने पर आत्मनिर्माण का उद्देश्य पूरा हो सके। यह चारों चीजें एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। इन चारों को मिलाकर ही बात बनती है।
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नया व्यक्ति बनेगा, नया युग आएगा
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समय ने आगे के लिए कदम बढ़ाया। अपने परिवार एवं संगठन को एक और आयाम दिया गया। अब उसके साथ युग निर्माण योजना को भी जोड़ दिया गया है। उसका अर्थ यह था जो कि हमने लोगों को बतलाया कि हर व्यक्ति को एक माला गायत्री जप के साथ में नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक क्रांति हेतु भी बढ़चढ़कर कुछ काम करने के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने उस समय व्यक्ति- निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज- निर्माण के कार्यक्रम भी चलाए।
यह युग निर्माण योजना के साथ जुड़कर मिशन के हुए विकास का क्रम था। हमने प्राइमरी कक्षा पूरी कर ली। हाईस्कूल की कक्षा भी हमारे मिशन ने पूरी कर ली है। अब हमने कॉलेज के स्तर की पढ़ाई प्रारंभ कर दी है, अर्थात् अब हमारी प्रौढ़ावस्था आ गई है। अतः अब हमें कॉलेज स्तर का होना चाहिए। उसी स्तर के क्रियाकलाप एवं योजना होनी चाहिए। वही अब बन रही है, बनाई जा रही है, परंतु इस बारे में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जिस युग परिवर्तन की बात कर रहे हैं, जिस समाज को बदलने की प्रतिज्ञा लेकर चले हैं, हम जिस नए समाज के निर्माण की बात करते हैं, उस संदर्भ में हमें विचार करना होगा कि युग निर्माण क्या है?
समाज का अभिनव निर्माण
मित्रो! युग निर्माण का अर्थ होता है- नए समाज का निर्माण करना। समाज क्या है? समाज व्यक्तियों का समूह मात्र है। लोगों का समुदाय इकट्ठा होकर ही समाज बनता है। उसके प्रत्येक घटक को समुन्नत बनाना, समृद्धिशाली बनाना हमारा काम है। यही है समाज निर्माण का उद्देश्य। फूल इकट्ठे होकर ही माला बनते हैं। सींके इकट्ठा होकर बुहारी बनती है। धागे इकट्ठा होकर रस्सा बनते हैं। इसी तरह समाज व्यक्तियों से बनता है। समाज के लोगों को देखकर ही युग की स्थिति देखी जा सकती है। अतः समाज निर्माण के कार्य को आरंभ करने से पहले हमें आत्मनिर्माण का कार्य करना पड़ेगा। यह आज नहीं, वरन् आज से तीस साल पहले हमने बतला दिया था कि हमारे क्रियाकलाप क्या हैं तथा हमारी भावी
योजना क्या है?
समाज निर्माण कैसे होगा? इस संदर्भ में उन दिनों, एक युगनिर्माण सत्संकल्प के रूप में घोषणापत्र बनाया गया था, जिसमें यह बात स्पष्ट रूप से बतला दी गई थी कि व्यक्ति निर्माण के संबंध में चार चीजें परम आवश्यक हैं। साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा, यह चार बातें आत्म निर्माण के लिए परमावश्यक हैं। यह चार बातें ऐसी हैं, जो एक- दूसरे के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। इन चारों को पूरा कर लेने पर आत्मनिर्माण का उद्देश्य पूरा होता है। इसमें एक भी ऐसा नहीं है, जिसे छोड़कर केवल अन्यों में पूरा कर लेने पर आत्मनिर्माण का उद्देश्य पूरा हो सके। यह चारों चीजें एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। इन चारों को मिलाकर ही बात बनती है।
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