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श्री रामकृष्ण परमहंस के गले में नासूर हो गया था। इसी समय शशिधर चूड़ामणि उनके पास आए और बोले, “स्वामी जी! यदि आप अपने मन को एकाग्र करके कहें कि ‘रोग चला जा’ तो आपका रोग अवश्य मिट जाएगा।” परमहंस बोले, “जो हृदय मुझे सच्चिदानंद माँ का स्मरण करने हेतु मिला है, उसे मैं साँसारिक कार्य में क्यों लगाऊँ?” इस पर अनेक शिष्यों को संतोष नहीं हुआ। उन्होंने मिल-जुलकर आग्रह किया कि आप माँ से कहें कि वह...
Akhandjyoti May(2001)