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एक जागीरदार अपने ठिकाने का विस्तार और वैभव दार्शनिक सुकरात को सुना रहा था। डींगें सुनते-सुनते जब बहुत देर हो गर्द तो सुकरात ने एक पृथ्वी का नक्शा मँगाया और पूछा-बताना इसमें तुम्हारा ठिकाना कहाँ हैं।
नक्शे में उस ठिकाने का उल्लेख न था केवल प्रान्त ही मटर के बराबर जगह में दिखाई पड़ता था उसने उसी की ओर इशारा किया।
सुकरात ने फिर पूछा यह तो एक प्रान्त का नक्शा हुआ तुम अपने ठिकाने का...
Akhandjyoti Jan(1975)