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ख्याति प्राप्त सन्त से दीक्षा प्राप्त कर शिष्य ने भी प्रशंसा अर्जित करने, सम्मान बटोरने की बात सोची, किन्तु सन्त बड़े तपस्वी, बहुत पहुँचे हुए थे । वे शिष्य के मन की बात ताड़ गये और बोले-कि तुम गलत कारण से सही जगह आ गये हो। शिष्य ने कहा क्या मतलब? सन्त ने कहा-तुम अपने सुधार अथवा आत्मिक प्रगति के लिए नहीं आये, वरन् अपने को सजाने, ख्याति और प्रशंसा की दृष्टि से आये लगते हो, किन्तु अब...


Akhandjyoti Apr(1992)