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हँसते रहो, मुस्कराते रहो

उठो! जागो! रूको मत !!! जब तक की लक्ष्य न प्राप्त हो जाए। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे , उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता है उसे आंतरिक प्रसन्नता रहती है।

जीवन में उतार- चढ़ाव आते ही रहते हैं।
हँसते रहो, मुस्कुराते रहो।
ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं ,, मुस्कराए नहीं।
जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढऩा नहीं चाहिए।

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रामानुजाचार्य नदी स्नान करने जाते समय ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेते और स्नान करके लौटते समय शूद्र के कंधे पर हाथ रखकर लौटते। यह देख कुछ कट्टरपंथियों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि भगवन् स्नान का क्या महत्व रहा? आचार्य मुस्कुराए। उन्होंने कहा-स्नान करने से तो मात्र मेरी देह पवित्र होती है, किंतु मन का मैल-अहंकार तो ज्यों का त्यों शेष रह जाता है। मैं शूद्र का स्पर्श करके उसी मन की मलीनता को स्वच्छ करता हूँ।

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Akhandjyoti Mar(1998)