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राजकुमार शालिवाहन गुरु आश्रम मैं अध्ययन कर रहे थे। आश्रम में अन्य प्राणियों के जीवनक्रम को देखने-समझने का भी अवसर मिला तथा मानवोचित मर्यादाओं के पालन की कड़ाई से भी गुजरना पड़ा। उन्हें लगा पशुओं पर मनुष्यों जैसे अनुशासन-नियंत्रण नहीं लगते, वे इस दृष्टि से अधिक स्वतंत्र हैं। मनुष्य को तो कदम-कदम पर प्रतिबंधों को ध्यान में रखना पड़ता है। एक दिन उन्होंने अपने विचार गुरुदेव के सामने रख दिए।
गुरुदेव ने स्नेहपूर्वक समाधान किया, ‘वत्स! पशु...
Akhandjyoti Nov(2001)