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विधाता सृष्टि की रचना में लगा था जब मनुष्य का नम्बर आया तो उसे बनाने में अधिक श्रम, समय और अपनी सूझ बूझ का परिचय देना पड़ा। ईश्वर का लाड़ला पुत्र कहलाने में मनुष्य को गौरव का अनुभव होता था। उसके कृत्य अपने पिता की तरह ही नेक और भलमनसाहत पूर्ण थे। उसके नेत्र अच्छी वस्तुएँ देखते थे, कान हरिर्कीतन तथा गुणानुवाद को बड़े चाव से सुनते थे जिह्वा से निकलने वाला प्रत्येक शब्द सत्य, मधुर और सार्थक...


Akhandjyoti Jan(1979)