शांतिकुज्ज हरिद्वार के वरिष्ठ मनीषी आदरणीय वीरेश्वर उपाध्याय जी बाबूजी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। परम पूज्य गुरुदेव का अधिकतम सानिध्य आपको प्राप्त हुआ। प्राण - पण से आपने आराध्य के सामने समर्पण किया। गुरुदेव के विचारों में सदा रमे रहने के कारण आपकी ओजस्वी वाणी से सदा ही गुरूदेव के विचार उदघोषित होते हैं। आपका स्नेहाशीष हमें सदा मिलता रहे भगवान महाकालेश्वर से यही प्रार्थना है।

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नरेंद्र संन्यास लेकर विवेकानंद बन चुके थे। उन्हें परमहंस के उपासना−साधना कराई, पर समाधि तक ले जाकर रोक लिया, कहा, तुम्हें लोकसेवा का कार्य करना है।
विवेकानंद ने पूछा, लोकसेवा करानी थी, तो इतना समय व्यक्तिगत साधना में क्यों लगवा दिया? उत्तर मिला, आत्मसाधना के बिना लोकसाधना नहीं, जो बना नहीं वह बनाएगा क्या? और जो नया नहीं बनाया तो स्वयं बनने का क्या लाभ।
...Akhandjyoti Oct(2002)