हमारे देश में प्रचलित एक किंवदंती है जिसमें बताया गया है कि क्रोध की दवा क्या है? एक मनुष्य को बहुत क्रोध आता था, एक वैद्य से उसने इसकी दवा पूछी। वैद्य ने खाली पानी एक बोतल में भर कर उसे दे दिया और कहा कि जब क्रोध आये तो यह दवा मुँह में भर लो और भरे रहो, थोड़ी देर में तुम्हारा क्रोध कम हो जायेगा। तात्पर्य यह कि जब क्रोध आ जाय तो अपने को रोक कर किसी काम में लग जाने पर क्रोध कम हो जाता है।
मनुष्य जो कुछ दूसरों का अपराध कर बैठते हैं, वह उनके स्वभाव की निर्बलता है, यह सोचने और इस पर ध्यान देने से क्रोध बिल्कुल आता ही नहीं। अगर मनुष्य यह समझ ले कि अपराधी अज्ञान में अपराध करता है, तो क्रोध आये ही नहीं। महान् पुरुषों ने इसी तत्व को हृदयंगम करके ही क्रोध पर विजय प्राप्त की है। ईसा मसीह को जिन लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ाया, उन पर क्रोध करने की अपेक्षा, उनकी अज्ञानता के प्रति उन्हें दया थी। कृष्ण को जब बहेलिए ने अज्ञान वश बाण से बेध दिया तो अपने हत्यारे को देख कर वे केवल मुस्कराये थे और बोले कि इसमें तुम्हारा क्या दोष, यह तो होनहार ही था।
संसार प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने जीवन भर किसी विषय पर बड़े परिश्रम से खोज की थी। उन गवेषणाओं पर टीका-टिप्पणी करके उसने तमाम कागजात एक मेज पर रखे थे। एक दिन वह अपनी अध्ययनशाला में बैठे पढ़ रहे थे कि उसका कुत्ता डायमंड एकदम उचका और जलते हुए लैम्प को गिरा दिया। पलभर में सारे मूल्यवान कागज जलकर भस्म हो गये। जीवन भर का परिश्रम कुत्ते ने नष्ट कर दिया पर न्यूटन शान्त रहे। क्रोध पर उसकी विजय बेमिसाल विजय थी, उसका हृदय भारी था, उसने कुत्ते के सर पर हाथ फेरते हुए उसने कहा- “डायमंड, डायमंड, तुम क्या जानो, तुमने क्या कर डाला।” उसकी जगह पर शायद कोई दूसरा होता तो क्रोध में अंधा होकर कुत्ते को गोली ही मार देता। इन महान व्यक्तियों ने क्रोध पर इसीलिए विजय पाई थी कि वे अपराधी के अपराध को कारण न मानकर, उसकी अज्ञानता को कारण मानते थे। गाँधी जी कहा करते थे- “अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं।”
अखण्ड ज्योति- जून 1949 पृष्ठ 10-11
मनुष्य जो कुछ दूसरों का अपराध कर बैठते हैं, वह उनके स्वभाव की निर्बलता है, यह सोचने और इस पर ध्यान देने से क्रोध बिल्कुल आता ही नहीं। अगर मनुष्य यह समझ ले कि अपराधी अज्ञान में अपराध करता है, तो क्रोध आये ही नहीं। महान् पुरुषों ने इसी तत्व को हृदयंगम करके ही क्रोध पर विजय प्राप्त की है। ईसा मसीह को जिन लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ाया, उन पर क्रोध करने की अपेक्षा, उनकी अज्ञानता के प्रति उन्हें दया थी। कृष्ण को जब बहेलिए ने अज्ञान वश बाण से बेध दिया तो अपने हत्यारे को देख कर वे केवल मुस्कराये थे और बोले कि इसमें तुम्हारा क्या दोष, यह तो होनहार ही था।
संसार प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने जीवन भर किसी विषय पर बड़े परिश्रम से खोज की थी। उन गवेषणाओं पर टीका-टिप्पणी करके उसने तमाम कागजात एक मेज पर रखे थे। एक दिन वह अपनी अध्ययनशाला में बैठे पढ़ रहे थे कि उसका कुत्ता डायमंड एकदम उचका और जलते हुए लैम्प को गिरा दिया। पलभर में सारे मूल्यवान कागज जलकर भस्म हो गये। जीवन भर का परिश्रम कुत्ते ने नष्ट कर दिया पर न्यूटन शान्त रहे। क्रोध पर उसकी विजय बेमिसाल विजय थी, उसका हृदय भारी था, उसने कुत्ते के सर पर हाथ फेरते हुए उसने कहा- “डायमंड, डायमंड, तुम क्या जानो, तुमने क्या कर डाला।” उसकी जगह पर शायद कोई दूसरा होता तो क्रोध में अंधा होकर कुत्ते को गोली ही मार देता। इन महान व्यक्तियों ने क्रोध पर इसीलिए विजय पाई थी कि वे अपराधी के अपराध को कारण न मानकर, उसकी अज्ञानता को कारण मानते थे। गाँधी जी कहा करते थे- “अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं।”
अखण्ड ज्योति- जून 1949 पृष्ठ 10-11