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पत्नी त्याग - महापाप

🔵 उत्तानपाद के पुत्र और तपस्वी ध्रुव के छोटे भाई का नाम उत्तम था। यद्यपि वह धर्मात्मा राजा था फिर भी उसने एक बार अपनी पत्नी से अप्रसन्न होकर उसे घर से निकाल दिया और अकेला ही घर में रहने लगा।

🔴 एक दिन एक ब्राह्मण राजा उत्तम के पास आया और कहा- मेरी पत्नी को कोई चुरा ले गया है। यद्यपि वह स्वभाव की बड़ी क्रूर वाणी से कठोर, कुरूप और अनेक कुलक्षणों से भरी हुई थी, पर मुझे अपनी पत्नी की रक्षा, सेवा और सहायता करनी ही उचित है। राजा ने ब्राह्मण को दूसरी पत्नी दिला देने की बात कही पर उसने कहा- पत्नी के प्रति पति को वैसा ही सहृदय और धर्म परायण होना चाहिए जैसा कि पतिव्रता स्त्रियाँ होती है।

🔵 राजा ब्राह्मण की पत्नी को ढूँढ़ने के लिए चल दिया। चलते -चलते वह एक वन में पहुँचा जहाँ एक तपस्वी महात्मा तप कर रहे थे। राजा का अपना अतिथि ज्ञान ऋषि ने अपने शिष्य को अर्घ्य, मधुपर्क आदि स्वागत का समान लाने को कहा। पर शिष्य ने उनके कान में एक गुप्त बात कही तो ऋषि चुप हो गये और उनने बिना स्वागत उपचार किये साधारण रीति से ही राजा से वार्ता की।

🔴 राजा का इस पर आश्चर्य हुआ। उनने स्वागत का कार्य स्थगित कर देने का कारण बड़े दुःख, विनय और संकोच के साथ पूछा। ऋषि ने उत्तर दिया- राजन् आप ने पत्नी का त्याग कर वही पाप किया है। जो स्त्रियाँ किसी कारण से अपने पति का त्याग कर करती हैं। चाहे स्त्री दुष्ट स्वभाव की ही क्यों न हो पर उसका पालन और संरक्षण करना ही धर्म तथा कर्तव्य है। आप इस कर्तव्य से विमुख होने के कारण निन्दा और तिरस्कार के पात्र हैं। आपके पत्नी त्याग का पाप मालूम होने पर आपका स्वागत स्थगित करना पड़ा।

🔵 राजा को अपने कृत्य पर बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने ब्राह्मण की स्त्री के साथ ही अपनी स्त्री को भी ढूँढ़ा और उनको सत्कार पूर्वक राजा तथा ब्राह्मण ने अपने अपने घर में रखा।
🔴 देवताओं की साक्षी में पाणिग्रहण की हुई पत्नी में अनेक दोष होने पर भी उसका परित्याग नहीं करना चाहिए। जैसे पतिव्रता स्त्री अपने सद् व्यवहार से दुर्गुणी पति को सुधारती है वैसे ही हर पुरुष को पत्नीव्रती होना चाहिए और प्रेम तथा सद् व्यवहार से उसे सुधारता चाहिए। त्याग करना तो कर्तव्यघात है।

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