पंच मकार से मतलब मत्स्य,मांस,मदिरा(शराब),मुद्रा,मैथुन(समागम)है। इसका उल्लेख कौलतंत्र,योगी गोरखनाथ के साहित्य में मिलता है।
समय समय पर साधक अपनी सुविधानुसार इसके अर्थ में बदलाव करते रहे,मध्यकाल में इस का सम्बन्ध भोग से जोड़ दिया गयाऔर पंच मकार का विकृत स्वरुप आ गया,साधना में यौन तथा भोग प्रवृति बढ़ गयी।
कालांतर में योगी गोरखनाथ ने ''पंच मकार''का सही अर्थ समाज में प्रस्तुत किये।योगी गोरखनाथ के अनुसार-
*मत्स्य का अर्थ मछली नहीं है।इड़ा-पिंगला स्वर के प्रवाह से है। जब साधक इड़ा -पिंगला(मीन तुल्य) को संतुलित कर सुषुम्ना स्वर जागृत होती है..यह मत्स्य भक्षण है *मांस भक्षण का अर्थ मांस खाने से नहीं है बल्कि अपनी इन्द्रियो को अंतर्मुखी करने से है। * मदिरा प्रयोग का अर्थ दारू या शराब से नहीं है बल्कि खेचरी मुद्रा से है,खेचरी मुद्रा के अभ्यास से साधक सहस्त्रचक्र से निकल रही अमृत का पान खेचरी मुद्रा द्वारा करतें हैं। * मुद्रा का अर्थ धन से नहीं है बल्कि अभ्यास में प्रयुक्त विभिन्न मुद्रा (आकर/स्थिति) से है। *मैथुन से मतलब शक्ति (मूलाधारचक्र में स्थित) और शिव (सहस्त्रारचक्र) के मिलन से है। शिव-शक्ति का समागम (मिलन) मैथुन है। साधक कुण्डलिनी साधना में इसी पंच मकार का प्रयोग करते हैं।
समय समय पर साधक अपनी सुविधानुसार इसके अर्थ में बदलाव करते रहे,मध्यकाल में इस का सम्बन्ध भोग से जोड़ दिया गयाऔर पंच मकार का विकृत स्वरुप आ गया,साधना में यौन तथा भोग प्रवृति बढ़ गयी।
कालांतर में योगी गोरखनाथ ने ''पंच मकार''का सही अर्थ समाज में प्रस्तुत किये।योगी गोरखनाथ के अनुसार-
*मत्स्य का अर्थ मछली नहीं है।इड़ा-पिंगला स्वर के प्रवाह से है। जब साधक इड़ा -पिंगला(मीन तुल्य) को संतुलित कर सुषुम्ना स्वर जागृत होती है..यह मत्स्य भक्षण है *मांस भक्षण का अर्थ मांस खाने से नहीं है बल्कि अपनी इन्द्रियो को अंतर्मुखी करने से है। * मदिरा प्रयोग का अर्थ दारू या शराब से नहीं है बल्कि खेचरी मुद्रा से है,खेचरी मुद्रा के अभ्यास से साधक सहस्त्रचक्र से निकल रही अमृत का पान खेचरी मुद्रा द्वारा करतें हैं। * मुद्रा का अर्थ धन से नहीं है बल्कि अभ्यास में प्रयुक्त विभिन्न मुद्रा (आकर/स्थिति) से है। *मैथुन से मतलब शक्ति (मूलाधारचक्र में स्थित) और शिव (सहस्त्रारचक्र) के मिलन से है। शिव-शक्ति का समागम (मिलन) मैथुन है। साधक कुण्डलिनी साधना में इसी पंच मकार का प्रयोग करते हैं।