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थूकने योग्य स्थान!
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(श्री मंगलचंद भंडारी ‘मंगल, देवास सीनियर)
वह भवन उस नगरी में अद्वितीय बना था, यों तो कितनी ही विशाल इमारतों से वह नगर सुशोभित था, पर इतना सुन्दर और भव्य दूसरा न था, देश विदेश से बहुमूल्य पत्थर मंगा कर उसमें लगाये गये थे, सैकड़ों कुशल कारीगरों ने वर्षों तक अपनी बुद्धि का सर्वोत्तम प्रयोग इसके बनाने में किया था, तब कहीं वह भवन बन कर तैयार हुआ था। जिस...
Akhandjyoti Mar(1941)